
एक गाँव मे दो यक्ति रहते थे। दोनों बहुत ही पक्के मित्र थे, एक का नाम संदीप था और दूसरे का नाम मनीष था। संदीप और मनीष दोनों अपने जिंदगी यापन अपने -अपने तरीके से कर रहे थे। दोनों भगवान की भक्ति पूरे आदर ,निष्ठा और मन से करते थे। दोनों ही भगवान मे आस्था रखते थे और प्रतिदिन पूजा करते थे।
लेकिन दोनों का पूजा करने ,भक्ति करने का तरीका अलग -अलग था। मनीष दिन भर धूप ,दीप जलाकर हरे कृष्णा हरे राम करता रहता था। वही संदीप मॉस का व्यापारी था ,वह प्रतिदिन नहा -धोकर अपने माँस का दुकान खोलता और अपने दुकान में एक भगवान की तस्वीर लगा रखी थी। और वह पुरे मन से भगवान की पूजा कर के अगरबत्ती को मांस के एक टुकड़े पर लगा देता था और अपना कर्म करता रहता मांस काटना और उसको बेचना।
धीरे -धीरे समय बीतता गया।और संदीप अपने काम में तरक्की कर रहा था। एक दिन मनीष बहुत बीमार हो गया ,घर मे खाने के लिए कुछ नहीं था दवा के लिए पैसे भी नहीं थे। वह एकदम बिस्तर से उठ भी नहीं पा रहा था। यह बात गांव वाले के द्वारा संदीप को पता चला । तब संदीप मनीष से मिलने उसके घर गया। संदीप को इतना अमीर देख कर के मनीष अपने मित्र संदीप से कहा मैं दिन भर भगवान की भक्ति में लीन रहता हूँ और तो और मैं शाकाहारी भोजन भी करता फिर भी मैं गरीब और बीमार हूँ जब की तुम वह सारे काम करते हो जो भगवान के भक्ति के लायक नहीं फिर तुम आमिर और खुश कैसे हो.
मैं भगवान का सच्चा भक्त हूँ ,भगवान मेरे साथ ऐसे कैसे कर सकते है यह बात सुन कर नारद जी आये और उन्हों ने परीक्षा लेने की सोची नारद जी मनीष के घर गए वह अपने भक्ति भावना मैं लीन था। उसे दुनियदारी से कोई मतलब नहीं था। फिर नारद जी संदीप के पास गए उन्होंने देखा की वह पूजा पाठ खत्म कर के अपने कर्म को करने लगा और देखते ही देखते ग्राहकों की बहुत भीड़ लग गयी और उसे बहुत मुनाफा हुआ। इस कारण कर्म ही पूजा है.
प्रसंग की सिख :-
भगवान कभी भी ये नहीं कहते की आप दिन भर उनकी भक्ति और पूजा में लीन रहिए। कर्म कोई सा भी हो बस वह सही होना चाहिए। इसलिए कर्म ही पूजा हैं भगवान भी आपकी तभी मदत करते है, जब आप अपने कर्म को पूरी आस्था ,मन ,और लगन के साथ करते हैं