डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की अधूरी दास्ता।

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  • शाम का समय था ,रितेश रोजाना की तरह अपना काम करके घर लौट रहा था। मेरी नज़र रास्ते पर चल रही एक लड़की पर पड़ी ,जिसके साथ पाँच साल की छोटी बच्ची थी। मैंने ड्राइवर को गाड़ी रोकने को बोला और उस फरा से बात करने के लिए गाड़ी से उतरा और उसके पास गया।
  • फरा ने मुछे देखा और हिचकिचाते हुए बोली -कैसे हो तुम ? रितेश ने जवाब दिया मैं अच्छा हूँ और मैं पूछ पड़ा तुम बताओ ? फरा ने छोटी बच्ची के तरह इशारा करते हुए बोली यह मेरी बेटी है उसी पल वह छोटी सी जान मासुमियत के साथ बोल पड़ी -मेरा नाम जैनब है अंकल।
  • रितेश उसकी तरफ एक हल्की सी मुस्कान के साथ देखा तो वह किसी फरिश्ते से कम नहीं थी। एक पल को तो मैं खो गया क्यों की वह तो वही नाम है जो हमने कभी अपने होने वाली बेटी के लिए सोचा था। मैं तब वापस आया जब फरा ने पूछा -तुम्हारी पत्नी और बच्चे कैसे है ?
  • रितेश ने जवाब दिया -मैंने तो शादी ही नहीं की। फरा ने फिर पूछा क्यों ? रितेश ने जवाब दिया -कोई मिली ही नहीं। फिर एक अजीब से खामोशी का दस्तक हुआ। हमारी बातो का सिल -सिला कुछ ही पल में समाप्त हो गया। हमने फिर कभी मिलने का वादा करते हुए एक -दूसरे को विदा किया और अपने -अपने रास्ते पर आगे बढ़ चले।
  • रितेश ने भी ड्राइवर को गाड़ी स्टार्ट करने को कहा,और फिर यह सोचने लगा की घंटो -घंटो बात करने वाले लोग भी एक दिन अजनबी बन जाते है।
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  • फरा और रितेश की पहली मुलाकात उनके कॉलेज में हुई थी। फरा और रितेश का कोर्स एक ही था। फरा और रितेश न जाने कब अजनबी से दोस्त बन गए कुछ पता ही नहीं चला। समय के साथ दोस्ती प्यार में बदल गयी। रितेश और फरा एक साथ घुमा करते थे। घंटो घंटो बाते करते थे। जैसे एक सामान्य कपल किया करते थे। फरा पढ़ने मे अच्छी थी तो रितेश की मदद भी किया करती थी।
  • फरा और रितेश ने अपने रिश्ते के बारे में घर वालो को बताया। फरा के घर वालो ने शादी के लिए साफ़ मना कर दिया। क्यों की उस टाइम रितेश के पास कोई नौकरी नहीं थी। रितेश ने फरा के घर वालो से वक्त मांगा पर फरा के घर वालो ने साफ़ मना कर दिया और फरा की शादी कही और करा दी।
  • आज रितेशफरा के डिस्ट्रिक का मजिस्ट्रेट है। लेकिन रितेश यही सोचता है की मेरी भी जिंदगी कितनी हसीन होती अगर फरा मेरी होती। अब तो केवल फरा के ख़ुशी के लिए दुआ कर सकते है ,न की उसके लिए।
  • अधूरी रह गयी प्रेम कहानी।

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